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आधार-वोटर आईडी लिंकिंग पर बवाल: चुनाव आयोग का फैसला कितना सुरक्षित? जानिए विवाद और चिंताओं की पूरी कहानी

आधार-वोटर आईडी लिंकिंग पर बवाल: चुनाव आयोग का फैसला कितना सुरक्षित? जानिए विवाद और चिंताओं की पूरी कहानी: नई दिल्ली: चुनाव आयोग (ECI) ने वोटर आईडी को आधार से लिंक करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन इस फैसले पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीखी बहस छिड़ गई है। केंद्र सरकार के दावों के विपरीत, कांग्रेस और 104 पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों के समूह (CCG) ने इस कदम को “संविधान विरोधी” और “मतदाताओं के अधिकारों के लिए खतरा” बताया है।

क्या है पूरा मामला?
ECI ने 12 मार्च को गृह मंत्रालय, IT विभाग और UIDAI के अधिकारियों के साथ हुई बैठक के बाद आधार-वोटर आईडी लिंकिंग को हरी झंडी दे दी। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4), 23(5), 23(6) और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार होगी। साथ ही, ECI ने स्पष्ट किया कि आधार लिंकिंग “स्वैच्छिक” होगी और बिना आधार वाले मतदाताओं को वोटिंग से वंचित नहीं किया जाएगा।

विरोध की आवाज़ क्यों?

  • कांग्रेस का आरोप: पार्टी की Empowered Action Group ने कहा है कि ECI को सभी राजनीतिक दलों से सलाह लेनी चाहिए थी। उनका दावा है कि आधार लिंकिंग से “गरीब और वंचित तबके के लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से गायब हो सकते हैं”
  • CCG की चेतावनी: 104 पूर्व अधिकारियों के समूह ने अपने बयान में कहा कि यह कदम “चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है”। उन्होंने 6 प्रमुख कारण गिनाए, जिनमें आधार के जरिए “वोटर प्रोफाइलिंग”“डेटा लीक” और “गैर-नागरिकों को वोटर आईडी मिलने” का खतरा शामिल है।

CCG के प्रमुख तर्क:

चिंता का कारणविवरण
नागरिकता बनाम पहचानआधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, जबकि वोटर आईडी के लिए नागरिकता जरूरी।
फिजिकल वेरिफिकेशन की कमीआधार में घर जाकर सत्यापन नहीं होता, जिससे फर्जी वोटर आईडी का खतरा।
अस्पष्ट कानूनी प्रावधानRP Act की धारा 23(6) में “पर्याप्त कारण” जैसे शब्दों से मनमानी की गुंजाइश।
डेटा दुरुपयोगआधार-वोटर लिंकिंग से Cambridge Analytica जैसी घटनाओं का खतरा (दिल्ली एनालिटिका)।

सरकार vs विपक्ष: तलवारें तन गईं
केंद्र सरकार का कहना है कि यह कदम “डुप्लीकेट और फर्जी वोटर आईडी को रोकने” के लिए जरूरी है। लेकिन CCG ने MGNREGA और PDS में आधार लिंकिंग के दौरान “बड़े पैमाने पर नाम काटे जाने” के उदाहरण देकर सरकार के दावों पर सवाल उठाए हैं।

क्या कहता है डेटा?

  • 2023 में ECI ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 66.23 करोड़ आधार पहले ही वोटर लिस्ट से लिंक किए जा चुके हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के अनुसार, आधार लिंकिंग स्वैच्छिक है, लेकिन CCG का आरोप है कि ECI ने इसे “जबरन” लागू किया।

निष्कर्ष:
आधार-वोटर आईडी लिंकिंग का मुद्दा सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि “लोकतंत्र बनाम निगरानी” की बहस है। जहां सरकार इसे चुनावी पारदर्शिता का हथियार बता रही है, वहीं विपक्ष इसे “नागरिक अधिकारों पर हमला” मानता है। अगले कदम की निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट और संसद पर टिकी हैं।

पाठकों से अपील:
आपको क्या लगता है? क्या आधार-वोटर लिंकिंग देश के लिए सही कदम है या यह निजता के अधिकार का उल्लंघन? कमेंट में अपनी राय जरूर साझा करें। साथ ही, ऐसी ही अपडेट्स के लिए हमें फॉलो करना न भूलें!

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